हिंदू रक्तरंजित बंगालदेश का वर्तमान.
वर्तमान में हमारे देश का पड़ोसी, जिसे भारत ने पाकिस्तान के शिकंजे से मुक्त करके स्वतंत्र किया था, उस बंगलादेश में आज जो स्थिति है, वह अत्यंत भयावह है।
बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर निरंतर अत्याचार हो रहे हैं, और दिन-प्रतिदिन स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ, घटनाओं का क्रम क्या था, और क्या यह केवल हिंदुओं से संबंधित है, क्या यह केवल हिंदू-मुस्लिम का सवाल है? इन सभी बातों का हम इस लेख में विश्लेषण करेंगे।
अल्पसंख्यक हिंदू समाज पर अत्याचार कोई नई बात नहीं है, लेकिन वर्तमान में जो हालात बने हैं, उनकी शुरुआत बांगलादेश उच्च न्यायालय के एक फैसले के बाद हुई।
5 जून 2024 को, बांगलादेश उच्च न्यायालय ने बांगलादेश मुक्ति युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों के बच्चों और पोते-पोतियों के लिए 30% सरकारी नौकरी कोटा प्रणाली को पुनः लागू करने का आदेश दिया। जो लोग देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े, अपने परिवार और जीवन को खतरे में डाले, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ऐसी व्यवस्था लाना या पुनः लागू करना स्वाभाविक है।
वास्तव में, ऐसे प्रस्ताव का स्वागत किया जाना चाहिए था, लेकिन अगले ही दिन, 6 जून को, जमात-ए-इस्लामी, एक कट्टरपंथी संगठन की छात्र शाखा ने ढाका विश्वविद्यालय, जगन्नाथ विश्वविद्यालय, शेर-ए-बंगाल जैसे प्रमुख स्थानों और सड़कों को बंद कर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। बंगाल की इस अस्थिरता का फायदा उठाकर चीन, पाकिस्तान और कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने अपने एजेंडे को बढ़ावा देने का मौका पाया और बांगलादेश में भारत-विरोधी और हिंदू-विरोधी माहौल बनाने की कोशिश की। अंततः, इन घटनाओं का परिणाम बांगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे में हुआ।
शेख हसीना का सरकार ही नहीं, उनकी जान भी खतरे में पड़ गई। उन्हें अंततः भारत में शरण लेनी पड़ी। परेशान हिंदुओं पर अत्याचारों का सिलसिला फिर से शुरू हुआ। कलाकारों, खिलाड़ियों, गायकों, पुलिस अधिकारियों और अन्य पेशेवरों की हत्याएं की गईं। खुलना, रंगपुर, राजशाही, बारिशाल जैसे स्थानों पर यह अत्याचार अब भी जारी है।
इस्लामी आक्रमणकारियों के अत्याचार की परंपरा, जो पहले से चली आ रही थी, आज भी बांगलादेश में जारी है। हिंदू को काफिर मानकर उसे मारने की मानसिकता आज भी जीवित है, यह बांगलादेश इसका उदाहरण है।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम पर न तो उलेमा ने विरोध किया, न ही बॉलीवुड के खान-पंथियों ने कोई कैंडल मार्च निकाला। भारतीय हिंदुओं ने ही इन लोगों को अरबों की संपत्ति दी है, और आज भी उनके सबसे बड़े फैंस हिंदू ही हैं।
सच कहें तो शेख हसीना के कार्यकाल में भारत और बांगलादेश के रिश्ते सौहार्दपूर्ण रहे हैं। आज भी कई भारतीय कंपनियों ने अपने कारखाने बांगलादेश में लगाकर उसके आर्थिक विकास में सहयोग किया है। लेकिन बांगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (जिसके नेता को 2018 में एक ग्रेनेड हमले में सजा हुई थी, और शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद उसे अवैध घोषित कर रिहा किया गया), कट्टर इस्लामवादी जमात-ए-इस्लाम, और खलीफा राज्य स्थापित करने की कोशिश करने वाली तहरीक जैसे संगठन ने बांगलादेश को विषाक्त इस्लामवाद के जाल में फंसा दिया है।
पाकिस्तान का बांगलादेश में दिलचस्पी केवल पैन-इस्लामिज़्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह 1971 में विभाजित हुए क्षेत्र को पुनः हासिल करने का भी है।
चीन का इस मामले में आर्थिक समर्थन धार्मिक उद्देश्य से नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा को खतरे में डालकर, भारत की आर्थिक और व्यावसायिक प्रगति में रुकावट डालने के लिए है।
कुल मिलाकर बांगलादेश एक गंभीर मोड़ पर आ खड़ा है, जहां पाकिस्तान और चीन के समर्थित कट्टर इस्लामवादी तत्व अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी और हिजबुल तहरीर जैसे उग्रवादी समूहों ने हिंदू और बौद्ध समुदायों पर व्यापक हिंसा की है।
आगे जाकर, राजनीतिक विरोधियों को पाकिस्तान समर्थक रुख के चलते बढ़ती दमनकारी ताकतों का सामना करना पड़ता है, और बांगलादेश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ सैन्य और सांस्कृतिक आक्रमणों का भी सामना करना पड़ता है।
अल्पसंख्यक, सांस्कृतिक प्रतीकों और भारत-विरोधी कृत्यों के बढ़ते प्रभाव से बांगलादेश की भविष्य की दिशा उसकी आंतरिक स्थिरता और क्षेत्रीय शांति के लिए गंभीर खतरा बन रही है।
बांगलादेशी युवाओं के बुद्धिवाद और सदसद्विवेक का ह्रास हो रहा है, यह साफ दिख रहा है। यदि भारतीय उद्यमी अपनी निवेश वापस ले लें, तो यह देश भूख और कंगाली का शिकार होगा। और जब इन संगठनों के उद्देश्य सफल होंगे या विफल होंगे, तब बांगलादेश कंगालदेश बनकर रह जाएगा।
उस देश के साथ जो भी होगा, वह उसका अपना मामला है, लेकिन आज एक हिंदू के रूप में मैं भारत सरकार से निवेदन करता हूं कि बांगलादेशी हिंदू और बौद्धों की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दबाव डाले।
साथ ही, मैं अपने देशवासियों से भी अपील करता हूं कि वे बांगलादेश से आने वाले उत्पादों का पूरी तरह से बहिष्कार करें। अगर किसी वस्तु का "कंट्री ऑफ ओरिजिन" बांगलादेश है, तो उस वस्तु को न खरीदें। क्योंकि एक बात याद रखें, जब किसी को थप्पड मारकर समझ नहीं आता, तो उसे भुखा मारकर ही समझाना पड़ता है।
और क्या लिखूं, आप स्वयं समझदार हैं...
--- श्रीपाद श्रीकांत रामदासी
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